Saturday 28 May 2011

बिछड़ने
मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?
मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?
हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते?
ये रात, ये तनहाई, ये सुनसान दरीचे
चुपके से मुझे आके सदा क्यों नहीं देते।
है जान से प्यारा मुझे ये दर्द-ए-मोहब्बत
कब मैंने कहा तुमसे दवा क्यों नहीं देते।
गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो
हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते।

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